भूमिः अच्छे जल निकास वाली मध्यम दोमट मिट्टी
खेत की तैयारी: पलेवा के बाद खेत की 3-4 जुताईया करके सुहागा लगाए
बीज की मात्राः
छोटे साईज के बीज वाली किस्में- 40 कि.ग्रा. प्रति एकड़
मोटे बीज वाली किस्मे- 50 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़
प्रयोग करना चाहिए। छिड़काव विधि द्वारा बिजाई करने पर 50 कि.ग्रा. तथा पछेती बिजाई में 60 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़ डाले।
बिजाई का तरीका: बीज एवं खाद ड्रिल से करें। लाईनों के मध्य फासला 20 से.मी. रखें। पछेती बिजाई में लाईनों के मध्य फासला 18 से.मी. रखें। धान-गेहूँ फसल चक्र में गेहूँ की जीरो टिल ड्रिल मशीन से तप्पड़ में भी बिजाई की जा सकती है। कम्बाईन से कटे धान के खेत में हैप्पी सीडर द्वारा भी बिजाई की जा सकती है।
बिजाई का समयः सिंचित क्षेत्रों में समय की बिजाई 25 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक। पछेती बिजाई दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक कर लेनी चाहिए तथा उसके बाद गेहूँ की बिजाई लाभदायक नहीं होती। समय की बिजाई के लिए औसत तापमान 22 डिग्री सेल्शियस सबसे अच्छा है।
बीज उपचारः शक्तिवर्धक हाईब्रिड सीड्स कम्पनी का बीज पहले से ही आवश्यक कीटनाशक, फफूंदनाशक तथा जीवाणु खाद के टीके से उपचारित है पछेती बिजाई की अवस्था में बीज को रातभर (10-12 घन्टे) पानी में भिगोकर रखें। पानी का स्तर बीज से 1-2 से. मी. ऊपर रखे। पानी से बाहर निकाल कर बीज को 2 घन्टे छाया में सुखाएं तथा फरकरा होने पर बिजाई करें।
उर्वरकः जहाँ तक सम्भव हो उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर देनी चाहिए। लेकिन ज्यादातर किसान मृदा परीक्षण नहीं करवा पाते, तब ऐसी स्थिति में गेहूँ में उर्वरको की निम्न मात्रा प्रयोग करेंः
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उर्वरक मात्रा (कि.ग्रा./एकड़) |
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यूरिया |
डी.ए.पी. सुपर फास्फेट |
म्यूरेट ऑफ पोटाश
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जिंक सल्फेट
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सिचित |
120 |
50 |
20 |
10 |
असिंचित |
25 |
13 |
- |
- |
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पोषक तत्व (कि.ग्रा./एकड़) |
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नाईट्रोजन |
फॉस्फोरस |
पोटाश
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सिचित |
60 |
24 |
12 |
असिंचित |
12 |
6 |
- |
फॉस्फोरस, पोटाश व जिंक की पूरी मात्रा तथा एक तिहाई नाईट्रोजन बिजाई के समय ड्रिल करें। एक तिहाई नाईट्रोजन पहली सिंचाई पर तथा शेष बची हुई एक तिहाई नाईट्रोजन दूसरी सिंचाई के समय देनी चाहिए। यदि बिजाई के समय जिंक सल्फेट नहीं दी गई हो तो 500 ग्राम तथा 2.5 कि.ग्रा. यूरिया को पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई के 45 व 60 दिन बाद वो छिड़काव करें। भूमि में लोह तत्व की कमी होने पर गेहूँ में नई पत्तियों पर पीली धारियां नजर आती है. इसके उपचार के लिए 500 ग्राम फैरस सल्फेट (हरा कशीस) प्रति एकड़ को 100 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अन्तर पर वो छिड़काव करें।
सिंचाई: गेहूँ में सामान्यतः 4-6 सिचाईयों की जरूरत पड़ती है। हल्की व मध्यम भूमियों में 6 तथा भारी भूमियों में 4 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। यदि सिंचाईयों की उपलब्धता पर्याप्त न हो तो निम्नलिखित अवस्थाओं पर सिंचाई करनी चाहिए.
सिंचाईयों की उपलब्धता |
बिजाई के बाद सिंचाई के दिन
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दो |
22,85 |
तीन |
22,65,105 |
चार |
22.45, 85, 105 |
पाँच |
22, 45, 65, 85, 105 |
छः |
22. 45, 65, 65,105,120 |
खरपतवार नियंत्रण: गेहूँ में संकरी पत्ती वाले खरपतवारों (गुल्ली डंडा, जंगली जई आदि) की रोकथाम के लिए 500 ग्राम आईसोप्रोटूरान 75 प्रतिशत घु.पा. (ऐरीलोन, कैलरोन, टोरस) या 160 ग्राम क्लोडिनोफोप (टॉपिक/प्याँईट) 15 प्रतिशत घु.पा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से बिजाई के 35-45 दिन बाद स्पे करें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे बथुआ, कंडाई, प्याजी व जंगली पालक आदि की रोकथाम के लिए मैटसलफ्यूरान (एलग्रीप) 8 ग्राम/एकड़ की दर से बिजाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें।
गेहूँ में मिले-जुले खरपतवारों (चौड़ी व सकरी पत्ती वाले) के नियंत्रण के लिए टोटल (सल्फोसल्फ्यूरान + मैटसल्फ्यूरान) 16 ग्राम प्रति एकड़ या वेस्टा (क्लोडिनोफोप प्रोपायर्जिल+मैटसल्फ्यूरान मिथाईल) 160 ग्राम प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में घोलकर बिजाई के 35-45 दिन बाद स्प्रे करें। खरपतवारनाशी के छिड़काव के लिए हमेशा फ्लैट फेन नोजल का प्रयोग करें। जहाँ 'टोटल' नामक खरपतवारनाशी का छिड़काव किया गया है उस खेत में ज्वार या मक्की की फसल न ले।
बीमारियां व उनकी रोकथामः पीला, भूरा व काला रतुआ दिसम्बर, जनवरी / फरवरी में कम तापमान होने की वजह से आता है। रोग रोधी किस्मों के अलावा 800 ग्रा. मैकोजेब (डाइथेन एम. 45) प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ 10-15 दिन के अन्तर पर दो छिड़काव करें। गेहूँ में मोल्या रोग (नीमाटोड) से प्रभावित फसल में पौधे पीले रंग के होकर वृद्धि रूक जाती है तथा जड़ी में बालों की तरह गुच्छे बन जाते है। इसकी रोकथाम के लिए 13 कि.ग्रा. कार्बोफ्यूरान (फ्यूराडान-3 जी) प्रति एकड़ के हि