मृदा : अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक एवं पी एच 5.5 से 6.8 के बीच हो।
बुआई का समय :
पहाड़ी क्षेत्र में मार्च-अप्रैल।
पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में जनवरी, फरवरी, मई, जून।
दक्षिणी मैदानी क्षेत्र में : जून, अक्टूबर-नवम्बर, फरवरी।
उतरी मैदानी क्षेत्र में जून से अगस्त, नवम्बर से जनवरी।
पूर्वी मैदानी क्षेत्र में : दिसम्बर जनवरी, मार्च-अप्रैल।
मध्य भारत : मई-जून, नवम्बर-दिसम्बर।
बोने की अवधि में स्थानीय मौसम के अनुरूप परिवर्तन किया जा सकता है। अच्छी उपज के लिए खरीफ की बुआई उपयुक्त होती है।
बीज की दर: 250-300 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
दूरी : लाइन से लाइन : 60 से.मी. व पौध से पौध 45 से मी.
नर्सरी तैयार करना : एक एकड़ में मिर्च की बुआई करने के लिए 5 मीटर लम्बी, 1 मीटर चौड़ी, 15 सेमी. ऊँची, 7 क्यारियां तैयार करें। पौधों को उगने से पहले मरने से बचाने के लिए क्यारियों को दो दिन पूर्व । ग्राम/लीटर पानी में कैप्टान या थाइराम के घोल का छिड़काव करना चाहिए। बुआई के 10 एवं 20 दिन बाद नर्सरी में नुवाँक्रान 1.5 मिली. / लीटर या रोगोर 2.0 मि.ली. प्रति लीटर एवं डाइथेन 2.5 मि.ली./लीटर के घोल का छिड़काव करना चाहिए। बीज 0.5 सेमी. गहरा बोऐं एवं क्यारियों की नियमित सिंचाई करें। ठंडे मौसम में अच्छे जमाव के लिए क्यारियों के ऊपर पैलीथीन की टनल बनाए एवं जमाव होने पर हटा दें।
खाद एवं उर्वरक : खेत तैयार करते समय 15-20 टन एफवायएम को अच्छी तरह डिकम्पोज करके प्रयोग करें। एनपीके (किलो/हेक्टेअर) की मात्रा का नीचे दिए अनुसार प्रयोग करें :-
अवस्था |
एन |
के |
पी |
रोपाई |
40 |
100 |
100 |
रोपाई के 20 दिन बाद |
40 |
0 |
0 |
पुष्पण से पहले |
40 |
0 |
0 |
पहली तुड़ाई के बाद |
40 |
0 |
0 |
कुल |
160 |
100 |
100 |
खरपतवार की रोकथाम के लिए स्टोम्प 30 खरपतवार नियन्त्रण प्रतिशत दवा का 3.25-425 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 3-4 दिन बाद छिड़काव करें।
पौध रोपण : अच्छी तरह तैयार खेत में, 4-6 सप्ताह पुरानी पौध (4-5 पत्तियों वाली) की रोपाई करनी चाहिए। बरसात में पौध रोपण, मेढ़ों पर करनी चाहिए। पौध रोपण, के समय अमोनियम सल्फेट और पोटेशियाम नाइट्रेट को 2:1 के अनुपात में मिलाकर 270 लीटर पानी में 1.36 कि.ग्रा. मिश्रण का छिड़काव लाभदायक होता है। फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
पौध सुरक्षा
रोपाई के 15 दिन बाद पानी में : कीटनाशक / फफूंदनाशक 2 ग्राम DM-45 + 1.5 मि.ली. नुवाँक्रान प्रति लीटर
30 दिन बाद :1 ग्राम डेरासाल+2 मि.ली. होस्टाथियान/रोगोर प्रति ली. पानी में
45 दिन बाद :2 ग्राम कवच + 1 मि.ली. डेसिस प्रति लीटर पानी में
60 दिन बाद :1.5 ग्राम सल्फेक्स 2 मि.ली. स्पार्क प्रति लीटर पानी में
75 दिन बाद :1.5 मि.ली. सिम्बुश प्रति लीटर पानी में
कृपया ध्यान दे : फलों की अच्छी पैदावार, साइज, रंग तथा बिमारियों को फैलने से रोकने के लिए जमीन से 7-9 सेमी. की ऊँचाई तक की साइड की टहनियों को काट देना चाहिए। कमजोर पौधों में टहनियां न काटें। फसल में फूलों को गिरने से बचाव हेतु प्लेनोफिक्स 1 मि.ली. प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर पहला छिड़काव फूल आने की अवस्था में करें व दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के तीन सप्ताह बाद करें।
सफेद मक्खी से फसल को बचाने के लिए खेत के चारों ओर गैंदे के फूल लगाने चाहिए।
नोटः उपरोक्त दी गई सभी जानकारियां हमारे अनुसंधान केन्द्रों के निष्कर्षो पर आधारित है। फसल के परिणाम मिट्टी, प्रतिकूल जलवायु, मौसम, अपर्याप्त / घटिया फसल प्रबंधन, रोग एवं कीट के आक्रमण के कारण फसल तथा पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। फसल प्रबंधन हमारे नियंत्रण से बाहर है। अतः पैदावार के लिए किसान पूरी तरह जिम्मेदार है। स्थानीय कृषि विभाग द्वारा सुझाई गई सिफारिशें अपनाई जा सकती हैं।