गाजर उत्पादन की समग्र सिफारिशें

गाजर (Carrot) एक प्रमुख जड़वाली सब्जी है जो भारत में शीत ऋतु के दौरान बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। यह विटामिन A, बीटा-कैरोटीन, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट्स का प्रमुख स्रोत है।

गाजर उत्पादन की समग्र सिफारिशें

भूमि - गाजर सभी प्रकार की भूमियों में जिनमे लवणता न हो तथा पानी का निकास संभव हो, उगाई जा सकती है। परन्तु दोमट व रेतीली दोमट भूमि में सफलता से उगाई जा सकती है। ऐसी भूमि जिसमें नीचे की सतह कड़ी होती है, उनमें कई जड़े आ जाती है।

बुवाई का समय :- गाजर की बुवाई का सही समय सितम्बर माह है। अगेती बिजाई करने से अधिक तापमान के कारण जमाव में शिकायत आती है एवं गाजर की गुणवत्ता भी नहीं बनती गाजर सफेद रह जाती है व एक पौधे से कई जड़े बन जाती है। गाजर की बिजाई बिखेर कर या मेड़ो पर करने से अच्छी फसल तैयार होती है।

मेड़ो का अंतर 30 से. मी. तथा पौधों का अंतर 8-10 से.मी. रखना चाहिए।

बीज की मात्रा :-6-8 कि.ग्रा. प्रति एकड़ ।

खेत की तैयारी :- गाजर की बिजाई के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके ट्रैक्टर की हैरो द्वारा भूमि को भुरभुरी कर लें। मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने से भूमि में नीचे की कठोर तह टूटने से गांठ पंजा बनने की सम्भावना कम हो जाती है जमीन की निचली सतह सख्त या पथरीली होने पर गांठ पंजा बनने की सम्भावना रहती है। बिजाई से पूर्व गोबर की खाद व डी.ए.पी. भली भाँति मिला दें। साँठी व अन्य घास नष्ट कर दे।

खाद उर्वरक :- गाजर की खेती करने के लिए 20 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति एकड जुताई के समय डाले। 24 कि.ग्रा. नाईट्रोजन व 12 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति एकड़ की दर से दे। गाजर में 12 कि.ग्रा. पोटाश की अतिरिक्त मात्रा प्रति एकड़ की दर से देना अति आवश्यक है। पोटाश की यह मात्रा ऐसी जमीन में भी जहां पोटाश की पर्याप्त मात्रा हो डालनी चाहिए। गाजर में नाईट्रोजन की आधी मात्रा तथा सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरिट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय खेत में लगाऐ। नाईट्रोजन की शेष मात्रा करीब 3 से 4 सप्ताह बाद खड़ी फसल में लगाकर मिट्टी चढ़ा दे।

सिंचाई:  गाजर में 5-6 सिंचाई आवश्यक है। यदि खेत में पानी की कमी हो तो पहली सिंचाई बुवाई के तुरन्त बाद करनी चाहिए। सिंचाई करते समय ध्यान दे कि डोलियो के 3/4 भाग तक ही पानी जाए। बाद की सिंचाई मौसम व भूमि की नमी को ध्यान में रखते हुए करनी चाहिए।

निराई गुडाई: गाजर में शुरु मे खरपतवार नही पनप पाते है। यदि खरपतवार की अधिकता हो तो खुरपी के द्वारा खरपतवार निकाल देने चाहिए। ऐसी जगहो पर जहाँ बिजाई लाइनो में की गई है वहाँ करीब 3-4 सप्ताह बाद डोल पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

खुदाई : गाजर लगभग 90-95 दिन में तैयार हो जाती है। खेत में पानी देकर फावड़े की सहायता से खुदाई करनी चाहिए एंव ध्यान रहे कि गाजर न कटे, ऐसा करने से उसकी ब्रिकी की गुणवत्ता बनी रहती है।

विशेष सूचना :

(1) कुछ अति उत्साही कृषक अधिक लाभ कमाने के लालच में जुलाई के अन्त या अगस्त के मध्य तक बिजाई कर देते है इससे अकुंरण की समस्या आती है व गाजर की गाठ बन जाती है, जड़ से कई जड़े निकल जाती है और झण्डे निकल आते है व गाजर सफेद भी रह सकती है इसलिए गाजर की बिजाई सितम्बर माह से पहले न करें।

(2) भारी भूमियों में या जहाँ नीचे की भूमि सख्त होती है ऐसे खेतों मे गाजर की फोर्किंग (गाठ पंजा) की समस्या आ सकती है।

(3) अत्यधिक पानी देने या ऐसी भूमि जहाँ पानी का जल स्तर ऊँचा हो वहाँ गाजर मे फूसड़े (रेशे) बनने से सफेद रह जाती है जिससे गाजर की गुणवत्ता कम हो जाती है और गाजर की पैदावार भी प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है

(4) गाजर की देर से खुदाई करने से गाजर की पौष्टिक गुणवत्ता कम हो जाती है अर्थात गाजर फीकी तथा कपासिया हो जाती है तथा भार भी कम हो जाता है।

(5) गाजर में देर से पानी देने से गाजर फटने से गुणवत्ता कम हो जाती है।

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